शून्यावस्था

आह!
नीरस जीवन!
ना पश्चाताप्
ना ही अभिमान,
कहाँ गई
अश्रु की धारा?
दिखी नहीं
मधुर मुस्कान!
राग-द्वेष अरु
क्रोध रंच नहीं
प्रेम मूरत!
क्यों हुई बेजान?

अरी सखी!
क्या तू रूठी है?
या खोयी है
तेरी पहचान!
तेरा जीवन
रुका हुआ क्यों?
जीवन में आया
क्या व्यवधान?
द्वंद्व चल रहा
मन में तेरे?
या हो रहा
नवजीवन निर्माण!

यूँ चुप्पी साधे
रहेंगी कब तक?
बोल न, क्यों है
तू परेशान?
स्तब्धता का
मर्म न समझे
अब तो दे
शब्दों का ज्ञान!
मूर्तरूप धर
कुछ न होगा,
अवसित नहीं तू,
तू है इंसान!

-आरती मानेकर

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