अकसर
प्रेम वार्ता के क्षणों में
जब कभी तुम्हारी हठों को
मैं पूर्ण न कर पाती
या मेरी बचकानी बातों से
नाराज तुम हो जाते हो
और मौन धर लेते हो!
आह!
तुम्हारा मौन और
तुम्हारी नाराज़गी,
सच कहती हूँ
दर्द तनिक नहीं देते मुझको
अवसर देते हैं जबकि
तुम्हारे और करीब आने का
और अवसर देते हैं
हमारे प्रेम के वर्धन का!
मैं जानती हूँ
तुम्हारी नाराजगी क्षणिक है
और आनंददायी भी
प्रेमोपहार देती है तुमको,
तुम्हें ज्ञात है
मैं मना लुंगी तुम्हें
तभी तो रूठ जाते हो न!
उपहार
मेरे स्पर्श का
प्रेमालिंगन और
कपोलों पर हो मीठा चुम्बन
पिघल जाते हो तब तुम
महक उठता तब यौवन
वर्धित होता प्रेम हमारा
और बढ़ता अपनापन!
सच है
रूठना-मनाना
है प्रेम का निश्चित अंग
प्रेम तो सच्चा करता वो ही
जो हो थोड़ा निर्मम!
प्रेमवर्धन को रूठा करो तुम
और मैं मनाने को तत्पर
बस कभी ऐसे न रूठना
कि हो जाए प्रेम का अंत!
-आरती मानेकर
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feeling hearttouching poem.. 😂👍👌
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Heart felt words
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😊😊😊😊…
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Dil se nikle h…
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True
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वाह बेहतरीन 🙂
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😊😊😊शुक्रिया…😊..
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:))
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Boht khoob…. 🙂
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Thank you dear..😊😊😊✌
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Loving your blog. 🙂 aise hi likhte rehna….
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Thank u dear
…
Yes for sure..I’ll keep writing..😊✌
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🙏🙏🙏🙏 captivating, charismatic just awesome बहोत ही ज़्यादा सुन्दर लिखती हो आप
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धन्यवाद..!
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