Tumhari Narajagi

अकसर
प्रेम वार्ता के क्षणों में
जब कभी तुम्हारी हठों को
मैं पूर्ण न कर पाती
या मेरी बचकानी बातों से
नाराज तुम हो जाते हो
और मौन धर लेते हो!
आह!
तुम्हारा मौन और
तुम्हारी नाराज़गी,
सच कहती हूँ
दर्द तनिक नहीं देते मुझको
अवसर देते हैं जबकि
तुम्हारे और करीब आने का
और अवसर देते हैं
हमारे प्रेम के वर्धन का!
मैं जानती हूँ
तुम्हारी नाराजगी क्षणिक है
और आनंददायी भी
प्रेमोपहार देती है तुमको,
तुम्हें ज्ञात है
मैं मना लुंगी तुम्हें
तभी तो रूठ जाते हो न!
उपहार
मेरे स्पर्श का
प्रेमालिंगन और
कपोलों पर हो मीठा चुम्बन
पिघल जाते हो तब तुम
महक उठता तब यौवन
वर्धित होता प्रेम हमारा
और बढ़ता अपनापन!
सच है
रूठना-मनाना
है प्रेम का निश्चित अंग
प्रेम तो सच्चा करता वो ही
जो हो थोड़ा निर्मम!
प्रेमवर्धन को रूठा करो तुम
और मैं मनाने को तत्पर
बस कभी ऐसे  न रूठना
कि हो जाए प्रेम का अंत!

-आरती मानेकर

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