वर्षारण

काली घटा छाय रही आसमान में
लगता है रण होगा आसमान में।

दामिनी के तीर चले
और शंखनाद हो
ऐसे बरसो मेघ कि
चहु ओर आल्हाद हो।

कौन कितना बरसेगा
और कौन तरसेगा
जो होय हो जाने दो
इस बात पर न वाद हो।

वायु वेग धर रही
मयूर नृत्य को तैयार हो
आनंदित हो जन- मन
न लेश ही विषाद हो।

तरु पात नव-नव धरे
यूँ अवनि का श्रृंगार हो
मन पंक से भी प्रेम करे
ऐसा वर्षा का उन्माद हो।

-आरती मानेकर

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