गुरु

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गुरु ज्ञान का सागर है
एक गागर मैं भी भर लूँ।
गुरुदेव के नित दर्शन से
जीवन मैं सरल कर लूँ।

माँ बनी मेरी प्रथम गुरु,
जिसने जीवन में लाया है।
पहली वाणी माँ ने सिखलाई
माँ, ममता, प्रेम का साया है।

बचपन बीता सखी संग खेलत
वो नित नया खेल सिखलाती थी।
वो भी क्या किसी गुरु से कम है
मैं रूठती, तो मुझे मनाती थी।

एक रिश्ता मेरा पुस्तक से है
सिखलाया इसने ही स्वाध्याय।
गुरु का शस्त्र भी गुरु बना
सिखाती जीवन का हर अध्याय।

हर वो इंसान, जो जीना सिखलाएं,
गुरु के समतुल्य होता है।
गुरु बिन ज्ञान का अर्थ नहीं
गुरु तो अमूल्य होता है।

गुरु की महिमा का बखान करे
इतना उत्कृष्ट मेरा काव्य नहीं।
दक्षिणा भी मैं क्या दे सकूँ
वो द्रोण सही, मैं एकलव्य नहीं।

-आरती मानेकर

सभी गुरु भक्तों को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाइयाँ….

27 thoughts on “गुरु

  1. वह द्रोण सही में एकलव्य नहीं .. रोएँ खड़े हो गए मेरे 🙏🙏🙏 आमद श्री गुरुभ्यो नमः निहसंदेह निह्शब्द हूँ आज ।।

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  2. गुरु पूर्णिमा की आपको भी बहुत-बहुत मुबारक हो आरती जी!
    बहुत ही अच्छी रचना पेश की है आपने!
    वाकई आप बधाई की पात्र हैं!
    बहुत खूब

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  3. A massage for ur bloggers and u..
    ” Do everything for ur guru…always think that, is our creations and developed methods r in best way? U realizes ur gurus blessings of beams always stikes on ur head … and it reflects by ur nature and work…
    Nice poem …

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