नमस्कार!
इस विषय पर लिखने की काफी दिनों से इच्छा थी, आज अवसर मिला तो लिख लिया।
जैन धर्म में जन्म लेने के कारण मैं भी जैन हूं, किंतु व्यक्तिगत तौर पर आप मुझे नास्तिक पाएंगे। हां, यह बातें मेरे लिए कदापि मायने नहीं रखती, कि कौन-किस धर्म का है, किंतु इस लेख के संबंध में इस बात का उल्लेख मुझे आवश्यक जान पड़ा। जैन धर्म में कई कड़े नियम है, जैसे नियमित रूप से देव-दर्शन, संध्या से पहले भोजन, आदि-आदि। धर्म एक ऐसा विषय है, जिसे लेकर मेरी मां और मुझमें अक्सर विवाद होते हैं। वो मुझे मंदिर जाने को कहती है, कि लोग क्या कहेंगे? और मैं मंदिर जाती नहीं, क्योंकि लोगों ने कहां किसी को छोड़ा हैं।
आज सुबह का वाकया है। मेरी मां ने टेलीविजन चालु किया और जैन मुनि के प्रवचन सुनने लगी। कुछ शब्द मेरे कानों में भी पड़े, बात रुचिकर लगी, तो मैं भी सुनने लगी। मुनि श्री कहने लगे कि “अगर आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं, तो बच्चे के मां के गर्भ में आते ही स्वयं अच्छी आदतें अपनाना आरंभ करें। संध्या से पहले भोजन करें, रोज मंदिर जाएं, ताकि बच्चा भी बड़ा होकर ऐसा करे। अगर आप पिता है, मदिरापान करते है या चटपटा खाते है, तो अपने लिए ना सही, किंतु अपनी होने वाली संतान के लिए इन आदतों को छोड़ दें। लोग आपसे पूछेंगे- क्या बात है, आज-कल बड़े धर्मात्मा बने फिरते हो, क्या किसी साधु के प्रभाव में हो? आप हंस के उन्हें उत्तर देना- नहीं-नहीं! साधु तो क्या, मुझे तो भगवान भी स्वयं अपने प्रभाव में नहीं ला सकते, ये तो मेरे होने वाली संतान का प्रभाव है, जिसने मुझे बदल दिया।” बात मुझे अच्छी लगी। मैंने मां को चुटकी लेते हुए कहा कि बंद करो टेलीविजन, क्योंकि यहां सुनी किसी भी बात को आप जीवन में नहीं लाएगी। आपने अगर गर्भ में मेरे रहते यह सब किया होता, तो मैं आज कुछ और होती। बस फिर मां-बेटी की तू-तू-मैं-मैं शुरू हो गई। इसी तरह एक दिन मां ने गलती से श्वेतांबर (जैन धर्म में एक पंथ) मुनि के प्रवचन टेलीविजन पर लगा दिये और कुछ समय बाद स्वयं ही चैनल बदलने लगी कि यह तो श्वेतांबर मुनि के प्रवचन हैं। यह सुनते ही मैं अवाक रह गई कि क्या यही भक्ति है, क्या यही धर्म है! एक भक्त के लिए भगवान के सभी रूप एक जैसे होने चाहिए। क्या फर्क पड़ता है कि प्रवचन किस मुनि के हैं, हैं तो प्रवचन ही। किसी कवि ने कहा भी है कि सोना अगर गलत स्थान पर भी पड़ा है, तो हम उसे त्यागते तो नहीं (केवल उपमा)।
किसी घर में एक जगह दीया जलता है और दूसरी ओर उसी घर में वाद-विवाद, कलह होती है। घर का एक सदस्य मंदिर जाता है, दूसरा शराब के नशे में धुत कहीं पड़ा रहता है। घर में अंधेरा रखकर कोई मस्जिद में दीया नहीं जलाता! वो दीया भी किस काम का, जो हमारे अंदर के अज्ञानता के अंधकार को ना मिटा सके!
वाट्सअप तो सभी इस्तेमाल करते हैं। ऐसे ही मेरे एक समूह में फलां व्यक्ति ने एक वीडियो डाला। वीडियो में दिखाया गया था कि एक औरत, एक बाबा के पास अपनी समस्या लेकर जाती है कि मेरा पति खूब पैसा उड़ाता है, आदि-आदि। बाबा ने कहा कि बेटी, तुम्हारे पति को बुरी हवा लग गई है। औरत ने उपाय पूछा तो बाबा ने कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार संसार में ३३ कोटि देवी-देवता हैं, तुम मुझे सबके नाम से बस १-१ रुपया दान देना, मैं तुम्हारा काम कर दूंगा। वह औरत चतुर थी, तपाक से बोली- आप मुझे एक-एक कर सबके नाम बताएं, मैं रुपये देती हूं। वीडियो देखकर मेरी हंसी छूट पड़ी और चुंकि मैं उस वीडियो भेजने वाले को व्यक्तिगत रूप से जानती थी, तो मेरी भड़काऊ प्रवृत्ति के अनुसार मैंने कहा कि यही अंधविश्वास है, जो तुम में भी है। वह व्यक्ति भी देवी और बाबाओं पर ऐसा ही (अंध) विश्वास रखता है, किंतु अकर्मण्य है। हो गई फिर तू-तू-मैं-मैं शुरू और उसने समूह छोड़ दिया। कितनी बुरी तरह हावी है न अंधविश्वास हमारे मस्तिष्क पर!
उपवास! धर्म-भक्ति का एक अभिन्न अंग माना जाता है, किंतु शायद लोग इसके मायने नहीं समझ पाएं हैं। मैंने कई लोगों को कहते सुना और देखा भी है कि आज मेरा उपवास है एक समय का। सुबह साबुदाने की खिचड़ी खाई, अब शाम को भोजन करके उपवास छोड़ना है। क्या? क्या वास्तव में यह उपवास है? उपवास तो ‘त्याग’ होता है न? यही मैं जान पाई हूं आज तक! गांधी जी ने उपवास के बारे में कहा था कि- उपवास केवल ईश्वर भक्ति न होकर हमारी आत्मा की शुद्धि का साधन है।” कई लोग अपने आप को भगवान का परम भक्त कहने की होड़ में इस तरह के उपवास रखते हैं। सप्ताह में एक उपवास आपके शरीर को भी संतुलित रखता है और मन को संयमित! मत करो ऐसे उपवास, भगवान नहीं कहते हैं। हां, अगर मन में भाव हो, उन लोगों की तड़प जानने की, जिनको एक समय का भोजन भी नसीब नहीं होता, तो उपवास करो! अच्छा लगता है।
मैं यह नहीं कहती कि मंदिर जाना छोड़ दो, दीया लगाना छोड़ दो, प्रवचन सुनने मत जाओ या उपवास मत करो। करो! बेशक करो! क्योंकि भगवान है। हां, केवल इन बातों को दीखावा या आडंबर बनकर अपने जीवन पर हावी मत होने दो!
मैं यह जानती हूं कि उपरोक्त बातें सभी लोग जानते हैं, मैं तो बस याद दिलाना चाहती थी। यह लेख पढ़कर कई लोगों को बुरा लगा होगा। मैं माफी नहीं मांगूंगी। मेरा तो उद्देश्य ही यह था कि दिल पर बात लगे। क्योंकि जब दिल पर बात लगेगी, तभी तो बात बनेगी।
-आरती मानेकर
dharma dill se hota hai, sakhti se nhi nicely said sis
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Thank you Bhai…😊😊
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आडम्बर अंधविश्वास के साथ तुमने अपनी माँ की धर्म भक्ति को भी खदेड़ दिया
क्षमा चाहूँगा आरती मुझे नहीं पता तुम्हारी माँ आडम्बर में भी विश्वास रखती हैं या नहीं मगर कम से कम जब वो भक्ति करें तो अपनी बातों से उनकी आस्था को ठेस तो मत पहुंचाओ !
तुम्हे नहीं करना तो कोई बात नहीं सबका अपना मत है मगर जो लोग भक्ति करते हैं तुम उन्हें भी उलाहना ना दो क्योंकि ये उनका अपना मत है !
खैर भक्ति से धर्म वगरह का तो पता नहीं मगर पोसिटीवेटी जरूर आती है इसलिए मैं खुद को गर्व से आस्तिक कहूंगा
आज पहली बार में तुम्हारे विचारों का समर्थन नहीं करता ,हाँ ये जरूर कहूंगा आडम्बर अंधविश्वास और दिखावा इनका विरोध मैं भी करता हूँ !
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जब बात मेरे दिल को सही ना लगे, तो मैं भी परवाह नहीं करती कि सामने कौन है!
धन्यवाद!!!!
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सामने कौन जैसी यहां कोई बात नहीं है
और ना ही कोई विरोध कर रहा बस मैं सहमत नहीं हूं
😀
मेरे ख्याल से कोई सच्चा धार्मिक व्यक्ति कभी किसी नास्तिक का विरोध करेगा भी नहीं अगर वो करता है तो वो खुद पाखंडी है !
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लोग करते हैं…
तभी मैंने लिखा है!!!!
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ये बात फिर अपने लेख के साथ लिखनी थी आपको !
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यह मेरी लेखनी और मेरे विचार है!!!
कृपया अपने सुझाव के बोझ से इन्हें दूर रखे!
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Dhanyavaad !
ये शिकायत WordPress se kr skti ho ki vo comment wala option bnd kr dei
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🙏🙏🙏
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India seems to have become really intolerant these days 😜😜
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😂😂
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👻
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धन्यवाद!!!
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बेहद सही 👍👍👍👌
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धन्यवाद
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Dear arti ji………..
I agree with ur thought !
Shakti se bhakti hoti h ye swaym ki bhavna or aastha h jitna jiska man hota h wo utna hi dharmik hota h kisi k kehne pr ya kisi baat ki pewah se nhi. Yadi wo man markar dharm ko krta h to ho sakta h wo dharm se real attached na ho bs dikhawa kr raha ho…….
Me khud dharm se bahut attached hu to samjh sakta hu ki ye bhaw natural hote h kisi me overlap nhi kiye ja sakte.
Ab baat andh vishwas ki wo ek bahut bada burning isaue h samaj k liye or ghatak bhi…
Well written😊😊👌👌
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Thank you Mayank ji
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Ur wlcm 💐💐💐
Achcha laga pad kr ki aap samaj ke is pehlu ko bhi itni baariki se dekhti ho……….
Keep writing
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😊
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जय जिनेन्द्र । क्या इस बिषय पर में भी कमेंट कर सकता हूं?😢
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Jai jinendra…Jrur kijiye!
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He he…Kch kch meri tarah hi ho.. 😅😅 ..वैसे अच्छा लिखा है आरती..😋😉
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Thank you Abhi!
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Most Welcome #Arti … 😋😎
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Bahut sahi yr….
👌👌👌👍
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Thanks dear!
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Dharm aur bhakti me tark ki zarurat nahi Hoti. Par ek nastik Ko kafi tark Dene padte hai. Bina tark koi nastik nahi ban Sakta. Sachchai se munh mod lo, aankh band kar lo, bhakti shuru, par ek nastik bina tark ke kuchh bhi nahi maan sakta.
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Sahi baat h!!!.
Thank you..😊😊😊
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hamare ander or sabhi jeevon mein ishwar hai , koi bhi kritya ishwar ko mahsoos karne ka jisse swayam or samaaj ka bhala ho wahi bhakti hai , bhakti ek vyaktigat karya hai , adambar bhakti kabhi nhi ho skta !
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Yes. Thank you! 😊
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Itta voice mein mil jata to ….. 😇😇😇 omg
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Arti tumhari soch achi hai bilkul mere jaisi
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Thank you
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You’re an atheist too!?
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Yes… I wrote in that post!!!
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अंतिम वाक्य सत्यमेव जयते से 😁😁😁 काफी कुछ सीखने को भी मिला,,इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है..मैं हिन्दू हूँ किन्तु गुरुद्वारे भी जाता हूँ मस्जिद और गिरिजाघर भी जाता हूँ मैं आपकी सारी बातो से पूरी तरह सहमत हूँ और कम से कम इस बात की तो और भी खुशी है की मेरी मम्मी भी मेरी तरह सारे धर्मो का आदर करती है -धन्यवाद सुंदर पोस्ट के लिए
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Thank you Smit…🙌🙌
ACHha LGA aapko meri post pasand aai!
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अच्छी और सच्ची बात सबको पसन्द आती है इसमे धन्यवाद की कोई आवश्यकता नही देवी जी😃😄😄
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🙌🙌😊😊😊😊
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मैं यह नहीं कहती कि मंदिर जाना छोड़ दो, दीया लगाना छोड़ दो, प्रवचन सुनने मत जाओ या उपवास मत करो। करो! बेशक करो! क्योंकि भगवान है। हां, केवल इन बातों को दीखावा या आडंबर बनकर अपने जीवन पर हावी मत होने दो! , , भगवान होते है पर वो नही जो हमे इंसानो द्वारा बताए या दिखाए गए है , सोचो जब डायनोशर थे उस वक़्त क्या था , नही ना क्यों ,क्यों कि उस वक़्त इंसान तो था नही पर कही ना कही भगवान जरूर था , पर जब इंसान बना तब इसने किसी ना किसी स्वार्थ के पीछे अनगिनत भगवान बनाये , ये धर्म बनाये ओर ये आडम्बरो का प्रकोप बढता गया ,,,,,,,,, में बड़ा ही भगवान को मानने वाला था , लेकिन जब 12th की ओर ab उस बात को 3 साल हो गए तब तक तर्क वितर्क ओर कुछ लोगो के मेल मिलाप से नास्तिकता की ओर बढ़ता गया । और आज सम्पूर्ण तरीके से नास्तिक हु ,, आप जानते ही हो जब धर्म किसी मनुष्य द्वारा निर्मित है तो , फिर ये जो हमारे सामने मंदिरो ओर हर धर्म के भगवान है सब के सब यही की कल्पनाए मात्र है तो कुछ महापुरूष ओर उनका फिर यहाँ के इंसान ने भगवान में प्रकट करवा अपना स्वार्थ बना लिया ———–//– बोहत समय से में ब्लॉग पर जुड़ा हुआ हु पर नास्तिक पहली बार मिले हो
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👍👍🙏🙏
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अच्छा लगा आपकी पोस्ट पड़कर , सत्य लिखना ओर बताना बड़ा कठिन है पर खुद का ज़मीर बड़ा खुश हो जाता है
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Thank you so much.. .. I’m glad that u understood the truth I wrote!
Thank you
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😊😊😊💐💐
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nice one
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Thank you
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अति सूंदर पोस्ट , पढ़ कर अच्छा लगा ।
बात अगर आस्तिक और नास्तिक की हो तो में कुछ कहना चाहूंगा कमेंट बॉक्स के माधयम से ।
गौर से देखा जाये तो आस्तिक और नास्तिक दोनों में कुछ फरक नहीं है । दोनों ही तो कुछ जानते नहीं है , बस फरक इतना है एक आँख बंद कर के ये मान लेता है की जो कहा गया है धरम में वो ही सच है, दूसरी तरफ नास्तिक यह मानता है की जो कहा गया सच नहीं है ।
सत्य क्या है दोनों को ही नहीं पता होता और न ही वे सत्य के लिए खुले ह्रदय के हो सकते है, दोनों की दिशाएं अलग है चलने की और दोनों का अपना कोई अनुभव नहीं है ज़िन्दगी में …..सत्य तो वो ही जान पता है जो अपना ह्रदय खुला रख सके और सत्य जैसा है उसको वैसा ही अपनाने के लिए तैयार हो, जिसका कोई प्रक्षेपण न हो सत्य को लेकर!!
धन्यवाद !! 🙂 !!
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Bahut dhanywad is comment k lie…😊
Sarthk baat kahi aapne..
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🙏
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बेहद सटीक व सच लिखा आपने जो शायद हर किसी को हजम होना मुश्किल भी हो।आपने अपनी माँ जी को सिर्फ सही रूप भक्ति का व सही तर्क दिखाया है उन पर थोपा नही है,कहीं न कहीं भटके लोग देर सही इस पर विचार अवश्य करते हैं
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धन्यवाद…
उम्मीद है कि लोगों द्वारा विचार किया जाए इस पर…
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