चिड़िया

मेरे सूने आँगन में, आकर बैठी नन्ही चिड़िया, कर रही थी शैतानी।
खाकर दाना, पीकर पानी, अब करने लगी थी वो मनमानी।।

फुदक-फुदककर चलती थी, तो सर्र से कभी उड़ जाती थी।

मैं जो गुमसुम बैठी रहूँ, तो गाकर गाना मुझे हँसाती थी।।

एक छोटी-सी चिड़िया ने चहकाया था मेरा आँगन।

एक छोटी-सी चिड़िया ने याद दिलाया था बचपन।।
-आरती मानेकर

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