टूटता घर

घर टूटने से परिवार टूटा
या परिवार टूटने से घर!
इस बात की सत्यता
नहीं जान पाया कोई…
पुराना घर था
जर्जर हो चुका।
अपने ही कुछ बंद कमरों के
दरवाजों पर लगें
तालों का भार,
नहीं झेल पाईं
उस घर की कुछ दीवारें
और एक दिन गिर गईं।
रिसने लगी मिट्टी
ऊपर वाले माले से,
जहाँ नहीं पहुँची थी
बहुत दिनों से
कोई रोशनी की किरण,
प्राकृतिक या कृत्रिम ही।
उन बंद कमरों में शायद
अब रह रहे थे
चूहों और मकड़ियों के परिवार।
वो छत जो किसी समय
देती थी बीस को आसरा,
अब थक रही थी
दो जन का सिर ढँकते-ढँकते,
एक रात अचानक गिर पड़ी।
अगले दिन अख़बार में ख़बर थी
“टूटे घर के मलबे में दबकर
हुई फलां की मौत”
कोई नहीं जान पाएगा-
मौत का कारण
‘परिवार का टूटना’ था!

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

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