स्मृतिशेष

स्मृतियाँ
कहाँ होती हैं विस्मृत
मन-मस्तिष्क से।
विरले हैं हम,
जो करते हैं अभिनय
भूल जाने का
क्षण, घटनाएँ, स्थान और इंसान।

मस्तिष्क के किसी खांचे में
बैठा होता है
बिछड़ा हुआ
कोई मित्र।
पुकारता है,
करता है विनती
मिलन की।

फिर किसी खांचे में
बैठा हो कोई
परिणत अनुरागी,
स्नेह और क्षमा की
याचना करता,
शेष सभी भावों की
समिधा भरता।

वेदनाएँ देती घटनाएँ,
या उद्घाटित करती हैं
एकाकी हंसी का रहस्य।
जीवंत होकर
कहती हैं बारंबार-
वो क्षण जीवन का
जी लो पुनः एक बार।

वो स्थान जहाँ बीतें
जीवन के क्षण अमूल्य
या कहीं से गुजरे हो हम
अनिच्छा से कदाचित।
याद हो आते हैं
यदा-कदा,
बुलाते हैं कि
लौट आओ
एकदा।

स्मृतियाँ
कहाँ होती हैं विस्मृत
मन-मस्तिष्क से
रह जाते हैं
क्षण, घटनाएँ, स्थान और इंसान
हमेशा के लिए
स्मृतिशेष।

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

Book Review: Little Tales of Big India

Author: Sabra Patni

Language: English

Publication: The Write Order

Blurb:

The land of ascetics and poets, call centres and Silicon Valley aspirants, smiling street children selling flowers, smartly dressed professionals travelling in overcrowded trains, celebrities and their star kids…India! A land of many dreams and tales, some big, some small. Here are 3 such stories, which will touch your heart and leave you wishing that the happy endings of these quirky tales were always true.

About the Author: Sabra Patni is a first-generation author, singer, song-writer and composer living in the bustling city of Mumbai, India with her husband and daughter. She has been writing from an early age but it was only after the birth of her daughter that she decided to share her passion with the world. Having travelled across the globe, she uses her experiences to spin tales that cross boundaries and geographies. She intersperses real-life events into her stories and stretches the human imagination to accept the unimaginable. Influenced by apocalyptic themes she believes that in times of great calamitous events the human race will eventually rise like the phoenix and survive. Her stories portray strong characters that display the strength of the human resolve in times of great distress.

My Review:

Truly saying that I chose this book to read just because of its title ‘Little Tales of Big India’ and without reading the blurb of the book I thought the book may contain stories all around the India. But when I received the book I found that it contains only three stories but that was not disappointing to me, in fact I enjoyed the book and to my own surprise I finished reading this book in just 4 hours after long long long time. The book is not to enjoy but to learn about our society, The Indian Society. Though the first two stories of the book are set in the city of Mumbai but they represent the society of whole India.
Let’s discuss each story one by one. Starting from the first story, it is not new for women to experience sexual harassment in public places, some stays quite, only some do the needful against it. Not only women but men do experience it too. Social media is now an undividable part of our lives but as we all know even rumors spread like fire on it. But truth wins at the end in every story. The narrative is very simple, there is nothing like spice or twist in it. That’s something very real when the protagonist doesn’t even open up to her friend about the incident but to her little cousin, that shows the bondings and the grown up new generation, who understands quite well.

Jumping to the second story, we all see poor children either begging for food or selling some goods for livelihood on the roadsides, we all feel sorry for them but we don’t do anything for them for we have our own reasons. Only some rare souls are ready to do the needful for such children. A childless couple builds affection towards a flower girl is pure feeling for love. The ending of this story is something like a dream, A dream, which must come true…

Now when we talk about the third story, we get to know that in this society people are still ill minded, they have problems with girls wearing short and consider it to be the reason for rape. Castisms comes first than the actual facts. Politicians play with people’s feelings to win their elections.

The flow of first two stories was constant. It’s just a chapter of third story ‘Of Mullahs and Pandits’ that was a bit confusing. I mean I couldn’t really get it in one read, I had to reread it two times in order to understand the events.
This book is a good short read for anytime, anywhere.

Star Rating: 4/5

Book Link: Click Here to order your book.

Thanks for reading.

-Arti Manekar

स्त्रीत्व

भाई ने मेरे रहते
कभी नहीं लिया
एक प्याला पानी
माँ के मायके जाने पर
पिता को नहीं हुई कभी
भोजन पकाने की चिंता
मेरी मौजूदगी में
पति को कभी नहीं दिखी
सामने रखी वस्तु
इन सबके लिए
मेरा होना
आवश्यक है

मैं सोचती हूँ
उन घरों के बारे में
जहाँ कोई स्त्री नहीं है
उस घर के पुरुष भी
स्वयं ही पीते हैं पानी
खाते हैं खाना
और रखते हैं आवश्यक वस्तुएँ
उनकी सही जगह पर

स्त्री होना
एक वर्ग मात्र ही नहीं
मानवीय गुण भी है

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

मूल बिंदु

तुम और मैं
अनन्त अंतरिक्ष में कहीं स्थित
दो बिंदु हैं।
मैं विस्तृत होकर तुमसे मिलूँगी
और हम एक होकर
रेखा कहलाएंगे…

हमारा विस्तार
एक समतल होगा
जिसके कोनों पर होंगी
हमारी संतानें…

ऐसे बहुत से समतलीय परिवार
मिलकर बनाएंगे
त्रिविमीय समाज।

जिस प्रकार
एक बिंदु
ज्यामिति की
समस्त रचनाओं का मूल है,
वैसे ही
तुम और मैं
मिलकर रच सकते हैं
एक समूचा संसार…

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

🖤❤️

टूटता घर

घर टूटने से परिवार टूटा
या परिवार टूटने से घर!
इस बात की सत्यता
नहीं जान पाया कोई…
पुराना घर था
जर्जर हो चुका।
अपने ही कुछ बंद कमरों के
दरवाजों पर लगें
तालों का भार,
नहीं झेल पाईं
उस घर की कुछ दीवारें
और एक दिन गिर गईं।
रिसने लगी मिट्टी
ऊपर वाले माले से,
जहाँ नहीं पहुँची थी
बहुत दिनों से
कोई रोशनी की किरण,
प्राकृतिक या कृत्रिम ही।
उन बंद कमरों में शायद
अब रह रहे थे
चूहों और मकड़ियों के परिवार।
वो छत जो किसी समय
देती थी बीस को आसरा,
अब थक रही थी
दो जन का सिर ढँकते-ढँकते,
एक रात अचानक गिर पड़ी।
अगले दिन अख़बार में ख़बर थी
“टूटे घर के मलबे में दबकर
हुई फलां की मौत”
कोई नहीं जान पाएगा-
मौत का कारण
‘परिवार का टूटना’ था!

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

प्रतिरोध

मैं उससे प्रेम करती हूँ,
तो एक दिन उसके पास बैठी।
अगले दिन मैंने उसका हाथ पकड़ा।
फिर किसी दिन
मैंने चूमा उसका माथा,
उसने नहीं किया प्रतिरोध…
इसे उसकी सम्मति समझकर
मैंने फिर किसी रोज़
चूमे उसके कपोल और अधर
और जड़ दिए कुछ चुम्बन
उसकी गर्दन पर…
क्योंकि नहीं किया जा रहा था प्रतिरोध…
एक दिन मन किया सो
चूम लिया मैंने उसका सीना,
वहीं जहाँ रहता है दिल…
कांपने लगा वो और झटककर मुझे
उसने तब किया मेरा प्रतिरोध!
उसे मुझसे प्रेम नहीं है,
प्रेम हो जाने का भय है…!
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

अप्रकाशित पुस्तक

मैं किसी रोज
लिखूँगी एक पुस्तक
जिसमें होंगी कविताएँ
प्रेम और जीवन की…
और उसे बजाय भेजने के प्रकाशक को
भेज दूँगी किसी पूर्णत: अंजान पते पर!
एक पूरी तरह अंजान व्यक्ति के नाम!
चूँकि दुनिया में
छाए रहते हैं-
प्रेम और उदासी,
तो सम्भव है
वह व्यक्ति हो किसी का प्रेमी,
जो पढ़कर मेरी प्रेम कविताओं को
सुनाए अपनी प्रेमिका को
और दोनों खिलखिला उठेंगे…
ऐसा नहीं हुआ,
तो सम्भव है-
वह व्यक्ति हो
निराश, उदास, हताश!
जो पढ़ेगा मेरी कविताओं में जीवन
और फिर करेगा प्रयास
एक और बार
जीवन के लिए…
यदि ऐसा हुआ
तो मेरी यह पुस्तक,
अप्रकाशित रहकर भी
सफल सिद्ध होगी…

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

Happy Birthday Anju🖤❤️

प्यारी सखी अंजू!

सबसे पहले तो तुम्हें जन्मदिन की बहुत सारी शुभकामनाएँ। मेरे एक मित्र ने तुम्हारे लिए बधाई भेजी है कि तुम जल्दी भगवान बनो। अब उन्होंने ऐसा क्यों कहा है ये मैं तुम्हें बाद में फ़ोन पर समझा दूँगी।

इस पत्र में तुम्हारा हाल पूछना ज़रूरी नहीं समझती, जानती हूँ न मैं! तुम आज जब अपने घर के कामों से निवृत्त होकर फेसबुक खोलोगी और नोटिफिकेशन में अपने लिए यह पत्र पाओगी, तो निश्चित ही तुम्हारे चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित मुस्कान होगी, जिसे मैं देख पाऊँ या न पाऊँ महसूस जरूर कर सकती हूँ। माँ नहीं हूँ तुम्हारी, लेकिन तुम्हें बड़ा तो मैंने ही किया है न! सच तो ये है कि मुझे बड़ा करने के क्रम में तुम स्वयं भी बड़ी होती गई और चीज़ें सीखती गई।

भौतिक दूरी बहुत अधिक नहीं है हमारे बीच, लेकिन आज तुमसे मिल भी नहीं सकती, सो यह पत्र लिख रही हूँ। सोशल मीडिया ने भौतिक दूरियों को कुछ कम जो कर रखा है। मुझे आदत नहीं है अपने किसी भी व्यक्तिगत जीवन के व्यक्ति को सार्वजनिक करने की, लेकिन मुझमें तुम मुझसे ज़्यादा लगती हो, तो लग रहा है जैसे ख़ुद से ही बात कर रही हूँ मैं, इसलिए यह पत्र यहाँ लिख रही हूँ।

लोग कहते हैं मैं तुम्हारे जैसी दिखती हूँ और जब कभी फुरसत में बैठकर अपने जीवन का आँकलन करती हूँ तो पाती हूँ कि हम दोनों का जीवन भी कुछ-कुछ एक जैसा ही है, समस्याएँ भी कुछ एक ही तरह की और शायद इसलिए तुम मुझे समझ भी पाती हो। मुझे लगता है मैं तुम्हारा पुनर्जन्म हूँ और एक जीवन में दो जन्म साथ-साथ चल रहें हैं। तुम जैसे जीती हो, वो लोगों की नजर में सामान्य होगा, लेकिन मेरे लिए वो सच में कमाल है। ऐसे जी पाना हर किसी के लिए कहाँ सम्भव है। मेरे जीवन के बारे में भी तुम यही कहती हो न!

शादी के 15 वर्ष बाद भी तुम जब भी मायके से जाती हो तो अनायास ही रो देती हो, तुम्हारे आँसू प्रमाण है कि बेटियाँ मायके से बिदा हो सकती हैं, दिल से कभी नहीं। तुम सबकी लाड़ली हो और रिश्तों को बाँधे रखती हो, ये सीखती हूँ मैं तुमसे। मैं कुछ छोटी थी, तब तुमने रक्षाबंधन पर पिताजी के लिए पत्र भेजा था, मैंने ही सबसे पहले पढ़ा था और बहुत ज़्यादा आनंदित भी हुई थी। इसी तरह हर तीसरे दिन तुमसे फ़ोन पर बात होती है और वैसा ही आनन्द हर बार मिलता है।

अंजू, बचपन में तुम मेरी यशोदा रही और अब सखी बन चुकी हो। बचपन में जब मुझे पीलिया हुआ था, तब तुम ही मेरा ख़ूब ध्यान रखती थी, नींद में मेरे ऊपर पंखा गिर गया और जान तुम्हारी जा रही थी। मुझे नहलाने और तैयार करने के काम तुम्हारे जिम्मे थे और अपनी पढ़ाई के बीच तुम इन्हें बड़े प्यार से करती भी रही। हाँ, भैया भी तुम्हारे इस प्रेम में बराबरी का हिस्सेदार रहा है हमेशा ही। मैं तुमसे कितनी ही बार लड़ी हूँ, तुमने फिर भी कभी अपना प्यार कम ना किया और अब मुझे लगता है कि हर रिश्ते की तरह हमारी लड़ाइयाँ भी जरूरी थीं, हमारे बीच प्रेम को और बढ़ाने के लिए। मुझसे कितनी ही गलतियाँ हुईं, लेकिन फिर भी तुमने हमेशा ये कहा है कि मैं ही तुम्हारी प्रिय सखी रहूँगी। ये बात मुझे जीवन को थोड़ा और जीने के लिए प्रेरित करती है।

याद है तुमने एक बार पूछा था कि तुम्हें क्या तुम्हारे फूफाजी जैसा साथी चाहिए? और मैंने मस्ती में कहा उनसे भी बेहतर और तुम थोड़ी चिढ़ गई, जो कि स्वाभाविक भी था, फिर मैंने कहा कि इनसे बेहतर कौन ही हो सकता है! अंजू, तुम किस्मत वाली हो लड़की, तुम्हें एक बेहतरीन जीवनसाथी मिला है। मैं भी किसी बेहतर की तलाश में नहीं हूँ री, बस चाहती हूँ कि मेरा साथी मुझे प्रेम से ज़्यादा सम्मान दे।
देखो न! मुझे मिलें हुनर, तुमसे उन्नत जरूर हैं, लेकिन कहीं न कहीं तुमसे ही पोषित हैं और तुम्हारे बच्चों के लिए तुम्हारी जगह मैं आदर्श बन गई। यह क्रम कितना सुंदर है और ये ऐसे ही चलते रहना चाहिए। सखी, कैसे घुलमिल गए हैं न हम एक-दूसरे के जीवन में!

अंत में भगवान से तुम्हारे लिए ढ़ेर सारी खुशियाँ और उत्तम स्वास्थ्य माँगती हूँ। जानती हूँ कि पत्र पढ़ते-पढ़ते तुम्हारे आँखों में आँसू आ जाएंगे, भावुक बहुत हो न तुम, और तुरन्त ही तुम मुझे फ़ोन भी करोगी, जिसका मैं इंतजार भी करूँगी। बाक़ी बातें अब वहीं होंगी, क्योंकि पत्र की लंबाई अब शायद ज़्यादा हो रही है।

प्रेम बना रहे।🖤❤️

तुम्हारी बालसखी
आरती

नोट-अंजू मेरी तीन बुआओं में सबसे छोटी है, जिन्हें कभी बुआ कहकर संबोधित ना करते हुए हमेशा ताई(बड़ी दीदी) कहा है हम बच्चों ने।

अवसादमुक्त जीवन

मैं नहीं देना चाहती
अपनी भावी पीढ़ी को-
उत्तम शिक्षा,
पौष्टिक आहार
या सर्वसुविधायुक्त जीवन!
मुझे मिला है!
निश्चित है
मुझसे बेहतर उन्हें मिलेगा।

मैं कर रही हूँ प्रयास
कि उन्हें दे पाऊँ
अवसादमुक्त जीवन!
उनके लिए होगी स्वतंत्रता
कि वो कह पाए मुझसे
अपनी हर साधारण बात
और जता पाए
अपने असुरक्षा वाले भाव।
इस संवाद के बीच
ना बने अवरोध कभी
मेरा कोई व्यक्तिगत काम।
मैं पेशे से कुछ भी बन जाऊँ,
सबसे पहले बनूँगी
उनकी माँ!
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

कल्पनाओं में बसने वाले से…

मेरी कल्पनाओं में बसने वाले
ओ नीले चश्मे वाले लड़के!
तुम लेने लगे हो आकार शायद
मेरी कल्पना से बाहर
वास्तविकता में कहीं!
अनुभूति होने लगी है मुझे
तुम्हारे अस्तित्व की इस संसार में कहीं।

मैं कल्पना करती हूँ-
तुम्हारे साथ रोज मंदिर जाने की
और तुम्हें भगवान को पाते देखा है मैंने।
मेरी कल्पना में तुम एक आदर्श शिक्षक हो…
तुम्हें मग्न होकर पढ़ाते देखा है मैंने।
मैं सोचती हूँ हमारी पढ़ने की आदतें मेल खाए…
तुमसे जब भी मिली, तुम्हें किताबों में गुम पाया है मैंने!
मैं कॉफ़ी पीने जाती हूँ तुम्हें विचारों में साथ लेकर…
तुम्हें कॉफ़ी पसन्द है, सो एक कप और मँगवाया है मैंने।
तुम्हें बच्चा मानकर अपना ममत्व लुटाती हूँ कल्पना में…
असल में तुम्हें बच्चों का-सा पाया है मैंने।
कविताएँ लिखते हो मेरे लिए मेरे सपनों में तुम…
ग़ज़ल सुनते-गुनगुनाते तुम्हें पाया है मैंने।
“मैं एक अच्छी माँ बनूँगी”
मेरी इस भावना को आधार देता है तुम्हारा कथन कि
“मैं एक अच्छा पिता बनूँगा”,
इसपर तुम्हें अपना-सा पाया है मैंने।
मेरे लिए सुकून जीवन की मूलभूत आवश्यकता है!
तुम्हें सुकून से मुस्कुराते पाया है मैंने।
मैं सोचती हूँ तुम प्रेम से ज़्यादा सम्मान करो मेरा…
और तुमसे ही सर्वाधिक सम्मान पाया है मैंने।

तुम मेरी कल्पनाओं से
ज्यों के त्यों बाहर आए!
तुम्हारा होना उदाहरण है कि
जटिल से जटिल कल्पना भी
सत्य हो सकती है।

मैं अपनी कल्पनाओं में
तुमसे ख़ूब प्रेम करती हूँ,
अनन्त और भरपूर करती हूँ।
कदाचित वास्तव में इतना ना किया जा सके!
किंतु तुमपर लिखीं मेरी काल्पनिक कविताएँ पढ़कर
सम्भव है-
तुम्हें प्रेम हो जाएगा मुझसे
और इस तरह मेरी कल्पना
जीवंत हो उठेगी!
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’