ऊपर वाला हिस्सा वैसे भी खाली है

हाथ में कंगन, माथे पे बिंदी, कान में बाली है।
उसका मेरा हो जाना, ये पुलाव ख़याली है।

मेरी मोहब्बत को क्यों परखे वो सम्भलकर?
जैसे सौ का नोट, है असली कि जाली है!

उसके दिल की बातों पर मरती हूँ मैं।
ऊपर वाला हिस्सा वैसे भी खाली है।

मैंने कबका शाइर से पागल हो जाना था।
अक़्ल जो है वो दिल की करती रखवाली है।

इतनी मोहब्बत कोई किसी से करता है क्या?
जितनी साहब, उसने मुझसे कर डाली है!

उसके होने से हुआ ख़ुशियों में यूँ इज़ाफ़ा-
लगने लगा है मेरे घर में दीवाली है।

उसकी ज़ानिब, इश्क़ ये सारा मेरी ख़ता है।
उसको बताओ, दोनों हाथों से बजती ताली है।

ग़ज़ल ये पूरी सराबोर है उसकी मोहब्बत से।
लेकिन ये मकता ज़िंदगी-सा खाली है!

-आरती मानेकर