विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश भारत में चुनाव का दौर शुरू है। इसी के अंतर्गत मेरे शहर सौंसर (मध्यप्रदेश) में भी आज नगर पालिका अध्यक्ष व पार्षद पद के चुनाव है। अब जैसा कि मैंने शीर्षक में ही लिखा है “मतदान:लोकतंत्र का त्यौहार”, तो देखते हैं मेरे शहर में यह त्यौहार कैसे मनाया जा रहा है।
चुनाव का माहौल तो पिछले एक-डेढ़ महीने से ही है। 15 वार्डों से बने मेरे शहर में करीब 25000 मतदाता हैं। प्रत्याशी नामांकन पत्र भरते हैं, कुछ को सीट मिली, तो किसी को नामांकन वापस लेने को कहा गया, किंतु यह राजनीति है, यहां कौन, किसकी मानता है। अब देखिए, मेरे वार्ड में कुल 5 प्रत्याशी खड़े हुए हैं, जिनमें भाजपा, कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य निर्दलीय प्रत्याशी भी है। अब जब बारी प्रचार की आती है, तो मैंने पाया कि उनमें से कुछ को तो मैंने कभी देखा भी नहीं है। बारी-बारी से बार-बार हर प्रत्याशी ने घर में दर्शन दिए। किसी ने बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, तो किसी ने हाथ जोड़कर विनती की। ढोल-नगाड़ों के साथ हर प्रत्याशी ने अपना खूब प्रचार किया। कुछ दलों के जुलूसों में बच्चे भी थें, जिनको चुनाव का अर्थ भी पता नहीं, फिर भी नारेबाज़ी के साथ प्रचार कर रहे। फलां महोदय ने तो प्रचार की चरम सीमा पा ली है। कभी गाड़ी में बैठकर प्रचार किया, तो कभी दूल्हे जैसे सजकर घोड़े पर पूरा शहर घूम रहे। हद तो तब हुई, जब किन्नरों को साथ लिए सड़कों पर नृत्य करने लगे। खैर महोदय जी के जीतने के संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता, किंतु इन्होंने लोगों को हंसाया खूब है।
शहर में टक्कर कांटे की है, क्योंकि जातिवाद की परंपरा आज भी लोगों में चली आ रही है और यहां हर जाति के मतदाता हैं और लगभग हर जाति के उम्मीदवार भी।
उनकी नजरें युवा मतदाताओं पर खासी टिकी है। लेकिन शायद मैं अवयस्क लगती हूँ, तभी उन लोगों को बताना पड़ता है कि इस वर्ष मेरा भी मत है। पिछले मतदान से ही उत्साहित थी मैं इस दिन के लिए।
मैंने तो खूब लुप्त उठाया इस त्यौहार का। लोग जब घर आते और कहते कि, बेटा ध्यान रखना, तब हम भी हंसकर कहते कि, अभी तो हम ध्यान दे रहे हैं, जीतने के बाद कभी-कभार आप भी हम पर.ध्यान देते रहना। कई लोग यह भी पूछते हैं कि, बेटा किसे मत दोगी या दिया है, तब मेरा एक ही उत्तर होता है- जितने वाले को! क्योंकि अगर मेरा मत दिया इंसान नहीं भी जीतता है, तो भी जीतने वाले की सफलता में मेरा मत है, क्योंकि हारने वाले को मैंने मत दिया है। और अगर मेरा मत दिया इंसान जीतता है, तो फिर क्या कहने!
कई लोगों को मैंने देखा, सुबह एक दल के प्रचार में थें, तो शाम को दूसरे दल के जुलूस में। अब यहां कहने वाली बात नहीं, पाठक स्वयं समझदार हैं, कि जब दोनों तरफ से मतलब पूरा होता हो, तो ईमान डगमगा जाए तो भी कोई जिद्दत नहीं। खैर प्रचार कितनों का भी कर लो, मत तो केवल एक को ही देना है।
लोग शायद मतदान को केवल प्रत्याशियों के मतलब की चीज समझते हैं, देश के प्रति स्वयं का कर्तव्य नहीं! तभी तो कुछ लोगों ने प्रत्याशियों से मतदान केंद्र तक जाने का पेट्रोल भी मांग लिया।
एक फायदा मुझे भी हुआ है मतदान से, मेरे विद्यार्थियों को पिछले कुछ दिनों से इसी विषय के बारे में पढ़ा रही थी, संयोग से चुनाव की वजह से मुझे उन्हें समझाने में पर्याप्त उदाहरण मिल गए। सबसे बड़ा दुःख मेरी बहन को हुआ है। आचार संहिता के कारण राष्ट्रीय त्यौहार (स्वतंत्रता दिवस) के उपलक्ष्य में जो कार्यक्रम विद्यालयों में होते हैं, वो स्थगित कर दिए गए हैं, अन्यथा वह तो पूरी तैयारियों में थी।
चलो एक महीना बित गया, ढोल-नगाड़ों की आवाज के साथ और कल रात को आचार संहिता के साथ-साथ धारा 144 भी शहर में लागू हुई। लेकिन नियमों को तोड़ने वाले लोग कहां मानते हैं, 5 से ज्यादा लोगों के गुट तो कई जगह देखने मिले हैं। कुछ लोग किसी दल के बारे में भ्रामक अफवाह फैला रहे हैं। शहर में चर्चा का एकमात्र विषय है यह चुनाव। यहां तक कि व्हाट्सएप समूहों में भी बस यही चर्चा है। एक विशेष बात यह है कि जो कभी खास दोस्त थें, आज वे दोनों एक-दूसरे के विरोध में चुनाव लड़ रहे हैं।
आज सुबह मेरी नींद रोज की अपेक्षा जल्दी खुली, उत्साह ही वजह है इसकी। नहा-धोकर, तैयार होकर, गाड़ी लेकर मैं निकल पड़ी सुबह 7:30 बजे, घर से मतदान केंद्र की ओर। भीड़ ज्यादा नहीं थी वहां इतने सुबह, तो जल्दी ही मेरी बारी भी आ गई। वहां बैठे चुनाव आयोग के लोगों ने मेरा मतदाता पत्र देखा, उनके पास रखी सूचियों में मेरा क्रमांक जांचा, मेरे हस्ताक्षर लिए, तर्जनी पर स्याही लगाई और आगे बढ़कर ई.वी.एम. मशीन के द्वारा मैंने अपने मत दिए।ह्रदय गति थोड़ी बढ़ी हुई थी, उत्साह अब गर्व में बदल चुका था और खुशी भी थी। आखिर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए मैंने देश के प्रति अपने पहले कर्तव्य को निभाया। 19वेंं क्रमांक की मतदाता थी मैं आज।
सुबह से लोग सबको मतदान केंद्र तक पहुंचाने में लगे हुए हैं, गाड़ियां भी लगी है, सबके चेहरों और कपड़ों में भी आज विशेष चमक है, आखिर त्यौहार की खुशी है। शाम तक यही दौर चलेगा। 16 अगस्त को परिणाम भी घोषित होगा। तब कोई लेख नहीं लिखूंगी, खुशियां मनाई जाएगी उस दिन, प्रजातंत्र की जीत की।
-आरती मानेकर