JINDAGI..

जिंदगी, कि जैसे नया पौधा
जो बढ़ता है और बढ़ता है।
     ये है कि जैसे तितली
     इसके रंग अनेक है।
          जिंदगी, कि जैसे कोरा कागज़
          कोई आकर न इस पर लिखता है।
               जिंदगी, कि जैसे मैदान रण का
               अनेक रण अभी इसमें लड़ना है।

जिंदगी, कि जैसे सफ़र सुहाना
इसमें अभी दूर तक चलना है।
     ये है कि जैसे नाटक रंगमंच पर
     इसके नाजाने कितने चेहरे हैं?
          जिंदगी, कि जैसे एक फूल
          खिलता है और मुरझा जाता है।
               जिंदगी, कि जैसे शूल भी
               चुभता है, रक्त निकालता है।

जिंदगी, कि जैसे बाल-हँसी
कोई इसके सहारे भी जैसे जीता है।
    ये है कि जैसे अश्रु नयन में
    जो एक भी हो, दिल में खटकता है।
         जिंदगी, कि जैसे जलता दिया
         इसे कभी न कभी तो बुझना है।
              जिंदगी, कि जैसे सिर्फ जिंदगी
              इसमें जीना है और मरना है।

-आरती मानेकर

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