तुम और मैं
अनन्त अंतरिक्ष में कहीं स्थित
दो बिंदु हैं।
मैं विस्तृत होकर तुमसे मिलूँगी
और हम एक होकर
रेखा कहलाएंगे…
हमारा विस्तार
एक समतल होगा
जिसके कोनों पर होंगी
हमारी संतानें…
ऐसे बहुत से समतलीय परिवार
मिलकर बनाएंगे
त्रिविमीय समाज।
जिस प्रकार
एक बिंदु
ज्यामिति की
समस्त रचनाओं का मूल है,
वैसे ही
तुम और मैं
मिलकर रच सकते हैं
एक समूचा संसार…
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’
🖤❤️