प्रतिरोध

मैं उससे प्रेम करती हूँ,
तो एक दिन उसके पास बैठी।
अगले दिन मैंने उसका हाथ पकड़ा।
फिर किसी दिन
मैंने चूमा उसका माथा,
उसने नहीं किया प्रतिरोध…
इसे उसकी सम्मति समझकर
मैंने फिर किसी रोज़
चूमे उसके कपोल और अधर
और जड़ दिए कुछ चुम्बन
उसकी गर्दन पर…
क्योंकि नहीं किया जा रहा था प्रतिरोध…
एक दिन मन किया सो
चूम लिया मैंने उसका सीना,
वहीं जहाँ रहता है दिल…
कांपने लगा वो और झटककर मुझे
उसने तब किया मेरा प्रतिरोध!
उसे मुझसे प्रेम नहीं है,
प्रेम हो जाने का भय है…!
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

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