भाई ने मेरे रहते
कभी नहीं लिया
एक प्याला पानी
माँ के मायके जाने पर
पिता को नहीं हुई कभी
भोजन पकाने की चिंता
मेरी मौजूदगी में
पति को कभी नहीं दिखी
सामने रखी वस्तु
इन सबके लिए
मेरा होना
आवश्यक है
मैं सोचती हूँ
उन घरों के बारे में
जहाँ कोई स्त्री नहीं है
उस घर के पुरुष भी
स्वयं ही पीते हैं पानी
खाते हैं खाना
और रखते हैं आवश्यक वस्तुएँ
उनकी सही जगह पर
स्त्री होना
एक वर्ग मात्र ही नहीं
मानवीय गुण भी है
-आरती मानेकर ‘अक्षरा’
दिल से दिल तक वाली पंक्तियां। शानदार लेखन।👌👌
भाई ने मेरे रहते
कभी नहीं लिया
एक प्याला पानी
माँ के मायके जाने पर
पिता को नहीं हुई कभी
भोजन पकाने की चिंता
मेरी मौजूदगी में
पति को कभी नहीं दिखी
सामने रखी वस्तु
इन सबके लिए
मेरा होना
आवश्यक है
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धन्यवाद मधुसूदन जी🙌 लंबे समय बाद आपका कमेंट मिला
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जी ….मेरा भी आना जाना अभी कम है यहां। आज facebook par aapka ek post नजर आया और wordpress tak aa gaye.
Aur apki kushlata aapke post batate rahte hain. Swasthya rahiye prashann rahiye.
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वर्डप्रेस का क्रेज कम हो गया है अब शायद
डायरेक्ट ऑडिएंस मिल जाती हैं दूसरी जगह
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