प्यार का इज़हार

रोज़ तोहफ़े में हमें गुलाब मिलता है
जाने-अनजाने में उनका प्यार मिलता है
शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
जिसके इज़हार के लिए ही गुलाब खिलता है।

वो बोले कि खूबसूरत है सूरत तेरी
लगती है जिन्दगी में अब ज़रूरत तेरी
शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
जिसका इज़हार ही तो है हसरत मेरी।

जैसे अंधेरे में तन्हा, डर लगना लाज़मी है
वो साथ ना हो, तो सिर्फ उसी की कमी है
शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
जिसका इज़हार वो करेंगे, ये हमें यकीन है।

वो बोले मुझसे जुदा होकर तुझे रोना है
हमने कहा- “बिन तेरे फिर कहाँ हमें जीना है?”
शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
जिसके इज़हार के इंतजार में हमें जीना है।

ना जाने क्यों प्यार में दिल बेक़रार होता है?
आँखों-ही-आँखों से प्यार का इक़रार होता है
शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
जिसके इज़हार से पहले ही प्यार होता है।

-आरती मानेकर

28 thoughts on “प्यार का इज़हार

  1. क्या बात है बहुत खूब भाई
    ‘ना जाने क्यों प्यार में दिल बेक़रार होता है?
    आँखों-ही-आँखों से प्यार का इक़रार होता है
    शायद हो गई है उन्हें भी हमसे मोहब्बत!
    जिसके इज़हार से पहले ही प्यार होता है।’

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