तिलक लगाओ

आध्यात्म कहता है-
प्रयागराज के संगम की भाँति
तुम्हारे मस्तक पर
है त्रिवेणी नाड़ियों की।
वहीं गुरुस्थान है,
वहीं आज्ञाचक्र।
पवित्र होते हैं
संगम सारे,
उन्हें पूज्य बनाओ।
तुम तिलक लगाओ।

विज्ञान कहता है-
तुम्हारे ललाट पर
लगे हुए कुमकुम को
जब छुएगा सूर्य
अपनी तीव्र रश्मियों से,
भर देगा वो तुम्हें
भरपूर ऊर्जा से
और मन को मिलेगी
अत्यावश्यक शांति।
सो उपक्रम करो ये
कि तुम तिलक लगाओ।

श्रृंगार कहता है-
तुम्हारे भाल पर लगा
वो लाल टीका
तुम्हारी सुंदरता का
केंद्रीय आकर्षण है।
तारों भरे आकाश में भी
जैसे चकोर ढूँढता है
केवल चन्द्र को!
दृष्टि बाँधता है-
तुम्हारा कुमकुम वैसे ही!
सो तुम तिलक लगाओ।

प्रेम कहता है-
रहने दो ये सब,
पास आओ!
मस्तक पर कर लेने दो
चुम्बन का तिलक!
जो देगा तुम्हें
शांति, प्रसन्नता
और अपनापन।
प्रेम, संसार की
सबसे पवित्र पूजा,
सबसे तीव्र ऊर्जा
और सबसे सुंदर श्रृंगार है।

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’