हे नियति! तू क्या है?
निर्माता है,
जन्मदायी तू,
जननी है।
तू ही है वो शक्ति, जो
विध्वंसक है,
प्रलयकारी है।
देती है तू,
ना चाहेंगे, हमसे छिन ले।
हक़ है तेरा,
जो देती है वो छिन ले।
सागर में लहरें ,
तूफ़ान हवाओं से आता है।
जलमग्न होती है धरती,
कोहराम जीवन में छाता है।
माना कि गुम हो रही है
इंसान की इंसानियत।
किन्तु तू चंचल नटी है,
यही है तेरी असलियत।
-आरती मानेकर
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अत्यंत सुंदर !!!
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Thank you
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