अप्रकाशित पुस्तक

मैं किसी रोज
लिखूँगी एक पुस्तक
जिसमें होंगी कविताएँ
प्रेम और जीवन की…
और उसे बजाय भेजने के प्रकाशक को
भेज दूँगी किसी पूर्णत: अंजान पते पर!
एक पूरी तरह अंजान व्यक्ति के नाम!
चूँकि दुनिया में
छाए रहते हैं-
प्रेम और उदासी,
तो सम्भव है
वह व्यक्ति हो किसी का प्रेमी,
जो पढ़कर मेरी प्रेम कविताओं को
सुनाए अपनी प्रेमिका को
और दोनों खिलखिला उठेंगे…
ऐसा नहीं हुआ,
तो सम्भव है-
वह व्यक्ति हो
निराश, उदास, हताश!
जो पढ़ेगा मेरी कविताओं में जीवन
और फिर करेगा प्रयास
एक और बार
जीवन के लिए…
यदि ऐसा हुआ
तो मेरी यह पुस्तक,
अप्रकाशित रहकर भी
सफल सिद्ध होगी…

-आरती मानेकर ‘अक्षरा’

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