भूल जा मुझको ऐ शहर दीवाने
भूल जा मुझको ओ दोस्त मस्ताने
भूलना मुझको मेरे जन्मदाता
भूलना मेरी भगिनी और भ्राता।
माँ तेरे अंक पर ना मैं कलंक हूँ
ना ही प्रेमरस की मैं कोई मलंग हूँ।
बात ये थी कि
मेरा दिल परेशान था,
अस्तित्व पर खुद के जैसे
खुद ही शर्मसार था।
तात तेरी डाँट ने
मुझको खूब रुलाया था,
रात्रि नेत्र जागते
बस तेरे डर का साया था।
दूर जा रही हूँ अब
मैं तुम्हारे सायों से,
ढूंढने की मुझको अब ना
करना व्यर्थ कोशिशें।
मेरे गंतव्य की ना मुझे खबर है,
जिद्द में लेकिन मेरी असर है।
ना समझ कि मैं रंच भी गलत हूँ,
आत्म- हानि से भला है, तुमसे मैं पृथक् हूँ।
-आरती मानेकर
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आप एक अच्छी शायरा भी हो
मेरी शुभकामनाए
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Ty
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Dard e Dil..Sundar Kavita
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Ty Mr Ashok Dixit
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Ty dear…😄😃
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बहुत ही सुन्दर!! आरती !!!
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Very nice poem !
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Thank you..😊
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