याद है तुमको?
हमारी पहली मुलाक़ात
और वह एकाएक बरसात!
उस दिन बूंदों ने मुझे पहली बार छुआ था,
तर-बतर तो मैं पहले भी हुई थी,
लेकिन अहसास तब अंजाना-सा हुआ था।
तब से, हां तभी से,
शायद मुझे भी प्यार हुआ था।।
झीने हमारे अंबर से होकर,
बारिश तन में समायी थी,
सिंचित हो रहा था उर मेरा,
प्यार की पहली कली तब खिलखिलायी थी।
लाल हुए थें कपोल, आंखें झुकी,
प्यार ने हया की चुनर ओढ़ायी थी।।
हवा भी जैसे खूब हठी है,
मुझे छेड़ती; संकट में मेरी जवानी थी।
उस रात मैंने प्यार लिखा,
मेरी कलम भी तुम्हारे नाम की दिवानी थी।
कलम में स्याही उत्तेजित और
मेरे रगों में तुम्हारे प्यार की रवानी थी।।
एक अरसा हुआ, तब से ना मिले हम,
स्याही भी सूख-सूख जाती है।
हवा चंचल, फिर याद बनकर
तभी मुझसे खेलने आ जाती है।
गहरे अंबर को छाते देख फिर
मेरी उनींदी आंखें शरमाती हैं।।
उस पहली मुलाक़ात के बाद,
मैं बिना छतरी, घर से निकलती हूं।
मुझे मिलना होता है तुमसे,
मैं बारिश के बहाने खुद को छलती हूं।
फिर बूंदें छुती हैं मुझको,
मैं तर-बतर होती, ऐसे तुमसे मिलती हूं।।
आज फिर बरसात हुई, मैं भीगी
और बूंदों में मुझको तू दिखा है।
तेरे-मेरे मिलन से जलकर,
कलम ने आज फिर कागज से मिलना सिखा है।
हां, तुझसे मिल लेने के बाद,
मैंने आज फिर प्यार लिखा है।।
-आरती मानेकर